सोलर पैनल से जुडी 4 ग़लतफ़हमी के बारे में जानें

4 ऐसी गलतफहमी जिसके कारण कई लोग सोलर पैनल नहीं लगवाते हैं

सोलर पैनल लगाना आज के समय में सबसे अच्छा विकल्प है सोलर एनर्जी को उपयोग में लेने का जो कि एक रिन्यूएबल एनर्जी का सोर्स है। इससे न तो प्रदूषण होता है न ही पर्यावरण को कोई नुक्सान पहुँचता है। यह एक क्लीन और ग्रीन एनर्जी सोर्स है जिसे सबसे बेस्ट अल्टरनेटिव एनर्जी के सोर्स के रूप में देखा जाता है। इस आर्टिकल में हम बात करेंगे सोलर एनर्जी से जुड़े मैथ्स और जानकारी जिसके बारे में हर नागरिक को जानकारी होनी चाहिए।

अब जानते हैं सोलर पैनलों से जुडी मिथ के बारे में

सोलर पैनलों से जुडी 4 गलतफहमी के बारे में जानें
Source: Ecowatch

1. सोलर पैनल केवल सीधी धूप में ही काम करते हैं?

सोलर पैनलों के बारे में पहली आम ग़लतफ़हमी यह है कि वे केवल डायरेक्ट सनलाइट में काम करते हैं और बादल या बारिश होने पर बिजली जनरेट नहीं करते हैं। यह धारणा पूरी तरह से गलत है। आज के समय के सोलर पैनल विशेष रूप से 2021 से डेवेलप्ड अभी भी बादलों की उपस्थिति में एनर्जी जनरेट कर सकते हैं। इन पैनलों में एडवांस्ड हाफ-कट टेक्नोलॉजी और अन्य फीचर्स शामिल हैं जो अलग-अलग मौसम स्थितियों में भी एफिशिएंसी बनाए रखते हैं।

2. कम धूप में सोलर पैनल की परफॉरमेंस कम हो जाती है?

एक और आम ग़लतफ़हमी यह है कि सोलर पैनल केवल तेज़ धूप में ही मैक्सिमम इंर्गज्ञ जनरेट करते हैं और शादी या बारिश के दौरान उनकी परफॉरमेंस काफी कम हो जाती है। मॉडर्न सोलर पैनलों में टेक्नोलॉजिकल एडवांसमेंट के कारण वे अभी भी इन कंडीशन में एनर्जी जनरेट कर सकते हैं। पैनलों का तापमान सनलाइट के अमाउंट से ज्यादा उनके परफॉरमेंस को एफेक्ट करता है। जब तापमान बढ़ता है तो अब्सॉर्ब्ड एनर्जी का एक हिस्सा गर्मी के रूप में लॉस हो जाता है जिससे एनर्जी प्रोडक्शन कैपेसिटी कम हो जाती है।

बाइफेशियल सोलर पैनल दोनों तरफ से सनलाइट को अब्सॉर्ब करने में सक्षम हैं, जिससे वे कन्वेंशनल पैनलों की तुलना में ज्यादा एनर्जी जनरेट कर सकते हैं। यह सुविधा उन्हें कई मौसम स्थितियों से निपटने में ज्यादा एफ्फिसिएंट बनाता है। इन पैनलों में सेल के बीच थोड़ा सा अंतर होता है जो लाइट के उपयोग को बढ़ाता है और एक्सेसिवे टेम्प्रेचर राइज को रोकता है।

सोलर पैनलों की इंस्टालेशन के दौरान उनका स्ट्रक्चर और इंस्टालेशन हाइट पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है। वोयड स्ट्रक्चर पर पैनल लगाने से टेम्प्रेचर में एक्सेसिवे वृद्धि हो सकती है जिसके कारण उनकी एफिशिएंसी भी कम हो सकती है। इसलिए पैनल को जमीन या छत से 2 से 2.5 फीट की हाइट पर लगाना चाहिए। इससे मैक्सिमम एनर्जी आउटपुट सुनिश्चित होता है।

3. क्या सोलर पैनलों को ऑपरेट करने के लिए बिजली की नीड होती है?

सोलर पैनलों से जुडी 4 गलतफहमी के बारे में जानें
Source: LA Times

सोलर पैनल सिस्टम के बारे में एक आम ग़लतफ़हमी यह है कि वे केवल तभी काम करते हैं जब बिजली अवेलेबल हो। यह समझना ज़रूरी है कि सोलर सिस्टम दो प्रकार के होते हैं – ऑन-ग्रिड और ऑफ-ग्रिड। ऑन-ग्रिड सिस्टम ग्रिड की उपलब्धता पर निर्भर होते हैं, लेकिन ऑफ-ग्रिड सिस्टम की नहीं। ऑफ-ग्रिड सिस्टम बिजली की सप्लाई के बिना काम कर सकते हैं, जिससे वे दूरदराज के क्षेत्रों में उपयोगी हो जाते हैं जहां ग्रिड कनेक्शन उपलब्ध नहीं है।

सोलर पैनलों की एनर्जी प्रोडक्शन कैपेसिटी सनलाइट की इंटेंसिटी और उनकी अब्सॉर्प्शन कैपेसिटी पर निर्भर करती है। यह मिसकन्सेप्शन गलत है कि सोलर पैनल केवल गर्म और धूप वाले क्षेत्रों में ही प्रभावी होते हैं। आज के सोलर पैनल हाई एफिशिएंसी और बाइफेसियल टेक्नोलॉजी में आते हैं जो बादल और कम रोशनी की स्थिति में भी एनर्जी जनरेट कर सकते हैं। ये पैनल विभिन्न मौसम और तापमान स्थितियों में मैक्सिमम एनर्जी प्रोडक्शन सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।

4. क्या सोलर पैनल सिर्फ अमीरों के लिए हैं?

बाज़ार में एक आम ग़लतफ़हमी यह है कि सोलर पैनल सिस्टम केवल अमीरों के लिए हैं और उन पर खर्च किए गए पैसे के लिए इन्वेस्टमेंट पर रिटर्न काम आता है। आलोचकों का तर्क है कि एक सोलर सिस्टम में पांच लाख रुपये का इन्वेस्टमेंट करने से केवल मामूली रिटर्न मिलता है जिससे यह एक बेकार इन्वेस्टमेंट माने जाते हैं।इस धारणा के अनुसार, बिजली बिलों का भुगतान करने के लिए ऐसे पैसे का उपयोग करना और नियमित ग्रिड कनेक्शन का उपयोग करना अधिक सही कदम माना जाता है।

हालाँकि, इसमें सौर पैनलों द्वारा प्रदान किए जा सकने वाले लॉन्ग-टर्म लाभ और बचत की अनदेखी अक्सर होती है। सोलर पैनलों में इनिशियल इन्वेस्टमेंट ज्यादा लग सकती है लकिन उनके जीवन काल में बिजली बिलों पर काफी बचत होती है जिससे वे सभी आय स्तर के परिवारों के लिए अच्छा विकल्प होते हैं।

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