IIT कानपुर ने बनाया सबसे सस्ता सोलर पैनल
सोलर पैनल का बढ़ता उपयोग भारत की ग्रीन और रिन्यूएबल एनर्जी रेवोलुशन का एक इम्पोर्टेन्ट पार्ट है। इसकी मदद से आप एनर्जी इंडिपेंडेंट भी होते हो और ग्रिड पावर पर निर्भर हुए बिना अपनी पावर की नीड्स को पूरा कर सकते हो। इसी के चलते सोलर पैनलों का उपयोग हाल के कुछ सालों में काफी बढ़ गया है। आज के समय में सोलर पैनलों की मैन्युफैक्चरिंग बहार ही नहीं बल्कि भारत में भी होने लगी है। इसी बीच IIT कानपुर ने एक ऐसा सोलर पैनल बनाया है जो बाकी सोलर पैनलों के मुक़ाबले 10 गुना सस्ता है जिससे इसकी ओवरऑल कॉस्ट काफी कम हो जाती है।
इस नई टेक्नोलॉजी के चलते आप आसानी से कम कीमत पर सोलर पैनल खरीद सकेंगे जिससे देश के कई परिवार भी कन्वेंशनल पावर सोर्स से अपना लोड हटाकर रिन्यूएबल एनर्जी पर शिफ्ट करने में सक्षम होंगे। IIT कानपूर की इस डेवलपमेंट से भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के बाकी डेवलपिंग नेशन में भी हम ये सोलर पैनल एक्सपोर्ट कर पाएंगे जो एवरेज सोलर पैनलों से कई गुना सस्ते होंगे। आइए इसके बारे में और जानते हैं।
चीन की टेक्नोलॉजी से है 10x सस्ता सोलर पैनल
IIT कानपुर ने सोलर पैनलों के लिए एक ऐसी टेक्नोलॉजी डेवेलोप की है जो पड़ोसी देशों की तुलना में 10 गुना सस्ती है। इस कॉलेज के सस्टेनेबल एनर्जी विभाग के प्रोफेसर केएस नलवा ने इस रिसर्च के बारे में जानकारी दी है। इस रिसर्च में बिजली उत्पादन के लिए पेरोव्स्काइट सेल का उपयोग करके पैनल तैयार किए गए हैं। इस तरह की सेल दुनिया में पहली बार 2009 में डेवेलोप किए गए थे। इस टाइप के सोलर सेल ज्यादा तेजी से सोलर एनर्जी जनरेट कर सके हैं लेकिन इन पेरोव्स्काइट सेल का जीवन चक्र काफी कम होता है आमतौर पर केवल 6 महीने।
IIT कानपुर ने पेरोव्स्काइट सेल में इस कमी को सुधार लाया गया है। इस सेल को विकसित करने के लिए अन्य मटेरियल के ब्लेंड का उपयोग किया गया है जो बारिश या ओस से नमी को पेरोव्स्काइट सेल में एंटर करने से रोकेगा। इन सोलर पैनलों में मौजूद खामियों को दूर करने के लिए इन पर कार्बन की एक परत बिछाई गई है। इससे इन कोशिकाओं पर अल्ट्रावायलेट रे का पेनेट्रेशन रोका जा सकेगा और सेल एक्सेसिव्वे हीट से भी प्रोटेक्टेड रहेगा।
जानिए IIT कानपुर में डेवेलप की गई इस नई पैनल टेक्नोलॉजी के बारे में
पेरोव्स्काइट सेल का जीवनकाल 6 महीने से बढ़ाकर 2 वर्ष तक कर दिया गया है। इन सेल के जीवनकाल को 5 साल तक बढ़ाने के लिए लगातार रिसर्च जारी है। नई तकनीक से इन सोलर सेल की नमी और हुमिडीटी के प्रति सेंस्टिविटी समाप्त हो गई है। रेसेअर्चेर ने ड्राई और ह्यूमिड दोनों स्थितियों पर कण्ट्रोल प्राप्त कर लिया है। एक बार 5 साल तक का जीवनकाल हासिल करने के बाद 10 साल तक के जीवनकाल वाले सौर सेल पर काम किया जाएगा।
ट्रेडिशनल सिलिकॉन सेल की तुलना में पेरोव्स्काइट सेल की कॉस्ट 10% तक कम की जा सकती है। इससे इन सेल की कॉस्ट काफी कम हो जाएगी जिससे इन्हे कई प्रोजेक्ट्स में उपयोग में लिया जाएगा। भारत में निर्मित इस सोलर प्रोडक्ट के कई हैं। पेरोव्स्काइट सेल की एफिशिएंसी भी बढ़ाई जा रही है जिससे वे सिलिकॉन सेल के बराबर पावर जनरेट कर सकें। इस रिसर्च से संकेत मिलता है कि ये सेल सिलिकॉन सेल द्वारा जनरेट की गयी एनर्जी का 26% तक प्रोडूस कर सकते हैं।
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